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मिर्च की खेती

शिमला मिर्च की खेती के लिए उपयुक्त मृदा एवं जलवायु, किस्में और बुवाई का समय

शिमला मिर्च की खेती के लिए उपयुक्त मृदा एवं जलवायु, किस्में और बुवाई का समय

शिमला मिर्च का सब्जी के रूप में सेवन करना बहुत सारे लोगों को काफी पसंद है। इसलिए सालभर शिमला मिर्च की मांग बनी रहती है। 

दरअसल, शिमला मिर्च मध्य क्षेत्रों की एक प्रमुख नकदी फसल है। इसकी पैदावार विशेष रूप से कांगड़ा, मंडी, कुल्लू व चम्बा, सोलन और सिरमौर में की जाती है। 

शिमला मिर्च की खेती के लिए बेहतर जल निकासी वाली मध्यम रेतीली दोमट मृदा वाली जमीन सबसे अच्छी होती है। मृदा का पीएच मान 5.5 से 6.8 तथा जैविक कार्बन 1% प्रतिशत से ज्यादा होनी चाहिए। 

मृदा में पीएच स्तर, जैविक कार्बन, गौण पोषक तत्व (एनपीके), सूक्ष्म पोषक तत्व तथा खेत में सूक्ष्म जीवों के प्रभाव की मात्रा की जांच करवाने के लिए साल में एक बार मृदा परीक्षण बेहद आवश्यक है। 

अगर जैविक कार्बन तत्व एक प्रतिशत से कम हो तो खेत में 20-25 टन/हे० गोबर की खाद का इस्तेमाल करें। साथ ही, खेत में अच्छी तरह से 2-3 बार हल चलाकर गोबर को मिलाएं। 

हर बुआई के उपरांत सुहागा प्रयोग में लाऐं, जिससे कि खेत में किसी प्रकार के ढेले न रहें और खेत सही तरह से एकसार हो सके।

शिमला मिर्च की बुवाई का समय

शिमला मिर्च की बुवाई का समय निचले पर्वतीय क्षेत्रों में - फरवरी से मार्च तो वहीं मध्य पर्वतीय क्षेत्रों में मार्च से मई का होता है। 

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ऊंचे पर्वतीय क्षेत्र - शिमला मिर्च की रोपण योग्य पौध को निचले या मध्य पर्वतीय इलाकों से लाना अथवा पौध को नियन्त्रण वातावरण में इस प्रकार तैयार करें, जिससे अप्रैल-मई में रोपाई हो सके। 

बीज अंकुरण के समय तापमान 20° सैल्सियस होना चाहिए। जब पौध 10-15 सें.मी. ऊंची हो जाए तो खेत में शाम के समय इसकी रोपाई करें। रोपाई के बाद सिंचाई करना और कुछ दिनों तक सुबह-शाम पानी देना अति आवश्यक है।

शिमला मिर्च की कुछ अनुमोदित किस्में

आपकी जानकारी के लिए शिमला मिर्च की कुछ अनुमोदित किस्मों की जानकारी। इन किस्मों में केलीफोर्निया वन्डर, यलो वन्डर, सोलन भरपूर, भारत, सोलन संकर -1, सोलन संकर -2, है। इंदिरा, डौलर एवं विभिन्न स्थानीय किस्में।

शिमला मिर्च में मृदा उर्वरक प्रबंधन 

फलीदार जैसी दलहनी परिवार की फसलों के साथ आवर्तन से मृदा में नाईट्रोजन की स्थिति काफी मजबूत होती है। खेत में तीन-चार बार हल चलाएं और हर एक जुताई के उपरांत सुहागा चलाएं, जिससे कि मृदा भुरभुरी हो जाए। 

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खेत में 20 टन/हे० गोबर की खाद तथा 2 टन/हे० बी.डी. कम्पोस्ट अथवा 15 टन/हे० वर्मी कम्पोस्ट तथा 2 टन/हे० बी.डी. कम्पोस्ट डालें।

शिमला मिर्च की खेती में खरपतवार प्रबंधन 

खरपतवार पर काबू करने के लिए आपको फसल चक्र अपनाना चाहिए। हाथ द्वारा खरपतवार निकालने से मृदा काफी ढीली हो जाती है, जो कि मृदा को काफी भुरभुरा बनाती है। रोपाई के 30-50 दिन तक खरपतवार को ना उगने दें। तीन-चार बार गुड़ाई के साथ खरपतवार को बाहर निकाल दें।

शिमला मिर्च की खेती में सिंचाई प्रबंधन 

बतादें, कि प्रतिरोपण के शीघ्रोपरान्त फूल आने पर और फल विकास की स्थिति में जल का अभाव नहीं होना चाहिए। शुष्क मौसम के दौरान प्रतिरोपण के पश्चात प्रथम महीने 3-4 दिन के समयांतराल पर सिंचाई और उसके बाद फसल तैयार होने तक 7-10 दिन के अन्तराल पर जल निकासी पर अधिक ध्यान दें। खेतों में ज्यादा नमी आने की वजह से फसल बर्बाद हो जाती है। इस वजह से खेत में पानी को ठहरने ना दें।

किसान अपनी छत पर इन महंगी सब्जियों को इस माध्यम से उगाऐं

किसान अपनी छत पर इन महंगी सब्जियों को इस माध्यम से उगाऐं

शिमला मिर्च की खेती भी बिल्कुल उसी तरह कर सकते हैं, जैसे बैंगन की करते हैं। हालांकि, इसमें धूप का और पानी का खास ध्यान रखना पड़ता है। प्रयास करें कि शिमला मिर्च के पौधों पर प्रत्यक्ष तौर पर धूप ना पड़े। बाजार में कुछ दिन पूर्व तक टमाटर की कीमत 350 रुपए प्रतिकिलो थी। दरअसल, सरकार के हस्तक्षेप के उपरांत इनके भाव अब 70 से 80 रुपए किलो तक आ गए हैं। परंतु, क्या आपको जानकारी है, कि बाजार के अंदर विभिन्न ऐसी सब्जियां हैं, जो आज भी 150 के पार चल रही हैं। इन सब्जियों में शिमला मिर्च, बैगन और धनिया शम्मिलित हैं। आइए आपको जानकारी दे दें कि कैसे आप इन सब्जियों को अपनी छत पर सहजता से उगा सकते हैं।

गमले के अंदर बैंगन की खेती

बैंगन को छत पर उगाना सबसे सुगम होता है। बाजार में इसके पौधे मिलते हैं, जिन्हें लाकर आप किसी भी गमले में इसको उगा सकते हैं। इसकी संपूर्ण प्रक्रिया के विषय में बात की जाए तो सबसे पहले आपको एक गमला लेना पड़ेगा। जो थोड़ा बड़ा हो उसके बाद उसमें मिट्टी और जैविक खाद मिला लें। जब इस प्रकार से गमला तैयार हो जाए तो नर्सरी से लाए हुए बैंगन के पौधों की इनमें रोपाई करें। एक गमले में आपको एक से ज्यादा पौधा नहीं रोपना चाहिए। ऐसे करके आप छत पर पांच से सात गमलों में बैंगन का उत्पादन कर सकते हैं। ये पौधे दो महीनों के अंतर्गत बैंगन देने लगेंगे। ये भी पढ़े: सफेद बैंगन की खेती से किसानों को अच्छा-खासा मुनाफा मिलता है

गमले के अंदर शिमला मिर्च की खेती

शिमला मिर्च की खेती भी बिल्कुल वैसे ही की जा सकती है, जैसे कि बैंगन की करते हैं। हालांकि, इसमें धूप का और पानी का विशेष ख्याल रखना पड़ता है। प्रयास करें कि शिमला मिर्च के पौधों पर प्रत्यक्ष तौर पर धूप ना पड़े। यदि ऐसा हुआ तो पौधा सूख सकता है। इसी प्रकार से आप हरी मिर्च की भी खेती सहजता से कर सकते हैं। यदि आपका छत बड़ा है, तो आप उस पर बहुत सारे गमले रख के एक छोटा सा वेजिटेबल गार्डेन तैयार कर सकते हैं, जिसमें आप प्रतिदिन बगैर रसायन वाली ताजी-ताजी सब्जियां उगा सकते हैं।

गमले के अंदर धनिया की खेती

संभवतः धनिया की खेती सबसे आसान ढ़ंग से की जाती है। हालांकि, इसके लिए आपको गमला नहीं बल्कि कोई चौड़ी वस्तु जैसे कोई बड़ा सा गहरा ट्रे लेना पड़ेगा। इस ट्रे में पहले आप जैविक खाद और मृदा डाल दें, उसके उपरांत इसमें बाजार से लाए धनिया के बीज छींट दें। फिर उसमें पानी का मध्यम छिड़काव कर दें। दस से बीस दिनों के समयांतराल पर धनिया के पौधे तैयार हो जाएंगे, एक महीने के पश्चात आप इनकी पत्तियों का इस्तेमाल कर पाएंगे।
किसानों को अच्छा मुनाफा दिलाने वाले पीपली के पौधे को कैसे उगाया जाता है

किसानों को अच्छा मुनाफा दिलाने वाले पीपली के पौधे को कैसे उगाया जाता है

समय के बदलने के साथ-साथ भारतीय किसानों की सोच और खेती करने का तरीका भी बदला है। वर्तमान में किसान भाई पारंपरिक खेती के अतिरिक्त बहुत सारी फसलों में भी हाथ आजमा रहे हैं। 

वह अब धान, ज्वार, सरसों की फसल के साथ साथ और भी कई तरह के पौधों को उगा रहे हैं। इनमें बहुत सारे औषधीय पौधे भी हैं। भारत में अब इनका चलन भी काफी ज्यादा बढ़ गया है। 

पीपली इनमें से एक औषधीय पौधा है, जिसकी खेती से किसान भाइयों को तगड़ी आय हो रही है। आगे इस लेख में जानेंगे पीपली की खेती से होने वाले मुनाफे के बारे में।

पीपली की खेती कैसे करें?

प्रमुख रूप से पीपली का पौधा छोटी पीपली और बड़ी पीपली 2 प्रकार का होता है। पीपली की खेती करने के लिए इसकी बेहतर किस्म का चयन करना अत्यंत आवश्यक होता है। 

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सामान्य तौर पर किसान नानसारी चिमाथी और विश्वम किस्मों के पौधे की खेती करना ज्यादा उचित समझते हैं। पीपली की खेती के लिए लाल मिट्टी, बलुई दोमट मिट्टी सबसे उपयुक्त रहती हैं। 

ध्यान रहे कि पीपली की खेती वाली जमीन पर पानी के निकलने के लिए ड्रेनेज व्यवस्था अच्छी होनी चाहिए। अधिकांश पीपली की खेती दक्षिण के हिस्सों में की जाती है, जिनमें तमिलनाडु और आंध्र प्रदेश जैसे राज्य शामिल हैं।

पीपली के पौधे की जीवन अवधि कितनी होती है

पीपली की खेती करने के दौरान उसके लिए उपयुक्त मात्रा में सिंचाई की सुविधा होनी चाहिए। इसके साथ-साथ नमी वाली जलवायु होनी चाहिए। इसे फरवरी या मार्च के महीने में लगाना चाहिए। 

खेत में बेहतर तरीके से जुताई करने के पश्चात खाद और पोटाश फास्फोरस डालने के बाद आप पीपली के पौधे को लगा सकते हैं। धूप से पीपली का पौधा बर्बाद हो सकता है। 

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इसके लिए आपको वहां छांव करने की आवश्यकता पड़ सकती है। पीपली का पौधा लगाने के पश्चात 5 से 6 साल तक रहता है, जिससे आप मुनाफा कमा सकते हैं।

पीपली का पौधा कई बीमारियों के लिए रामबाण

पीपली के पौधे की रोपाई के पश्चात ही लगभग 6 महीने के अंदर उसमें फूल आने शुरू हो जाते हैं। जैसे ही फूल काले पड़ जाएं। उन्हें तोड़ लेना चाहिए और सूखने के बाद वह बेचने के लायक हो जाते हैं. 

एक हेक्टेयर की बात करें तो इसमें 4 से 6 क्विंटल की उपज होती है. जिससे आपको अच्छा खासा मुनाफा हो सकता है। मेडिकल के क्षेत्र में पीपली का पौधा काफी काम आता है। सर्दी, खांसी, जुकाम, अस्थमा, पीलिया इन बीमारियों में यह पौधा अत्यंत कारगर साबित होता है।   

इस तकनीक से शिमला मिर्च की खेती कर किसान कमा रहा लाखों का मुनाफा

इस तकनीक से शिमला मिर्च की खेती कर किसान कमा रहा लाखों का मुनाफा

खेती-किसानी के तौर तरीकों में समय के साथ-साथ बदलाव आया है। किसान अपनी फसलों का उत्पादन पॉली हाउस जैसी उन्नत तकनीकों के जरिए कर रहे हैं। 

दरअसल, पॉली हाउस आधुनिकता से भरी एक उन्नत तकनीक है। इस तकनीक के जरिए खेती करने से फसल पर मौसम का प्रभाव भी नहीं पड़ता है। साथ ही, किसानों की भी तगड़ी कमाई होती है।

यदि आप भी परम्परागत खेती कर के ऊब चुके हैं और चाहते हैं कुछ नया करना तो आज का यह लेख आपके लिए बेहद उपयोगी साबित होगा। 

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किसान भाई अब परंपरागत खेती की वजाय लाल-पीली शिमला मिर्च उगा रहे हैं। इससे उनको साल में लाखों का मुनाफा भी हांसिल हो रहा है।

खेती करने से पहले मृदा एवं जल की जाँच 

आजकल आधुनिकता के बढ़ते अब खेती की तकनीक भी बदल रही हैं। किसान भाई खेती करने के लिए नई तकनीकों को इस्तेमाल कर रहे हैं। उत्तर प्रदेश के हाथरस में एक किसान पॉली हाउस में शिमला मिर्च की जैविक खेती कर तगड़ा मुनाफा प्राप्त कर रहा है।

हाथरस जनपद के गांव नगला मोतीराय के मूल निवासी सेवानिवृत शिक्षक श्याम सुंदर शर्मा और उनके बेटे अमित शर्मा ने लगभग 6 साल पहले पॉली हाउस लगाकर रंग-बिरंगी शिमला मिर्च की खेती शुरू की थी। रंग बिरंगी शिमला मिर्च की खेती शुरू करने से पहले उन्होंने खेत की मिट्टी-पानी आदि की जांच कराई। 

किसान कैसे कमा रहा अच्छा मुनाफा   

श्याम सुंदर शर्मा ने बताया है, कि फसल को कीट और रोग मुक्त करने के लिए भी जैविक तकनीकी का प्रयोग किया जाता है। आम शिमला मिर्च के मुकाबले रंग-बिरंगी शिमला मिर्च बाजार में अच्छे रेटों पर बिकती है। 

उन्होंने आगे बताते हुए कहा, कि उनका ये पॉली हाउस एक एकड़ में फैला हुआ है। रंग-बिरंगी शिमला मिर्च की खेती से वह साल भर में लगभग 12 से 14 लाख रुपये की आमदनी कर लेते हैं।

वहीं, पिता की खेती में मदद कर रहे श्याम सुंदर शर्मा के पुत्र अमित शर्मा बताते हैं, कि ये काम मन को तसल्ली देने वाला है। लाल-पीली शिमला मिर्च का मार्केट आगरा और दिल्ली में है। 

गाड़ी लोड होकर मंडी पहुंच जाती है और पैसा आ जाता है। वह अन्य किसानों को भी पॉली हाउस लगाकर रंग-बिरंगी शिमला मिर्च की खेती करने की सलाह देते हैं।

हरी मिर्च की खेती की पूरी जानकारी

हरी मिर्च की खेती की पूरी जानकारी

दोस्तों आज हम बात करेंगे हरी मिर्च की खेती से जुड़ी सभी प्रकार की आवश्यक जानकारियों के बारे में, हरी मिर्च का नाम सुनते ही जबान में अलग सा तीखापन आ जाता है। हरी मिर्च का इस्तेमाल खाने में स्वाद बढ़ने के साथ खाने को जायकेदार भी बना देता है। हरी मिर्च की खेती की पूर्ण जानकारी प्राप्त करने के लिए हमारी इस पोस्ट के अंत तक जरूर बने रहें:


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हरी मिर्च की खेती:

हरी मिर्च जिसको हम कैप्सिकम एनम के नाम से भी पुकारते हैं, खाने, सब्जी ,चार्ट, मसाले , अचार आदि तरह-तरह की डिशेस बनाने के लिए हरी मिर्च का इस्तेमाल करना अनिवार्य है। आप कितना ही स्वादिष्ट खाना क्यूं न बना लें, परंतु यदि आपने हरी मिर्च का इस्तेमाल नहीं किया होगा तो खाने में कुछ कमी रह जाएगी, जो पूरी नहीं की जा सकती है। ऐसे में हरी मिर्च, मसालों में अपना एक महत्वपूर्ण स्थान रखता है। हरी मिर्च एक गर्म मसाला कहा जाता है। मिर्च का इस्तेमाल सूखे पाउडर के रूप में, ताज़ी मिर्च तथा विभिन्न विभिन्न तरह से काम में आती है। स्वाद के साथ मिर्च में पौष्टिकता भी पाई जाती है। जैसे मिर्च में विटामिन और सी का प्रमुख स्त्रोत भी होता है। कुछ औषधियों में मिर्च का इस्तेमाल किया जाता है। इसलिए मिर्च की खेती करने से किसानों को बहुत लाभ पहुंचता है।

हरी मिर्च की खेती करने के लिए उपयुक्त जलवायु का होना:

किसानों के लिए हरी मिर्च की फसल आय के साधन के साथ ही साथ कम लागत वाली भी फसल है। इसलिए हरी मिर्च की खेती करने के लिए किसानों को विभिन्न प्रकार की उपयुक्त जलवायु की आवश्यकता पड़ती है। हरी मिर्च की खेती के लिए सबसे अच्छा तापमान 20 से 35 डिग्री सेल्सियस का तापमान उचित माना जाता है। गर्म आर्द जलवायु फसल के लिए सबसे अच्छी होती है क्योंकि कभी-कभी ऐसा होता है, पाले के द्वारा फसल पूरी तरह से बर्बाद हो जाती है।


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हरी मिर्च की फसल से ज्यादा उत्पत्ति प्राप्त करने के लिए उष्णीय व उप उष्णीय जलवायु की जरूरत होती है। तापमान उचित ना मिलने के कारण मिर्च की कलियाँ, फल, पुष्प आदि को नुकसान पहुंचता है और यह गिरना शुरू हो जाती हैं। ऐसे में हरी मिर्च की खेती करने के लिए गर्म और आर्द्र जलवायु उपयुक्त होती है। किसानों के अनुसार, आप हरी मिर्च की खेती हर प्रकार की जलवायु में कर सकते हैं। पर उचित रहेगा यदि आप गर्म और आर्द्र जलवायु का चुनाव करते हैं। हरी मिर्ची की फसल पर पाले का बहुत ज्यादा प्रकोप बना रहता है। ऐसे में हरी मिर्च के पौधों को 100 से 120 सेंटीमीटर वर्षा वाले क्षेत्रों में लगाना उचित होगा। ठंडा और गर्म दोनों प्रकार का मौसम हरी मिर्च की फसल के लिए हानिकारक होता है।

हरी मिर्च की खेती के लिए उपयुक्त मिट्टी का चयन :

हरी मिर्च की खेती करने के लिए सबसे उपयोगी मिट्टी बलुई दोमट मिट्टी होती है। किसानों के अनुसार, बलुई दोमट मिट्टी में फसल की बुवाई करने से हरी मिर्ची की पैदावार उच्च कोटि पर होती है। खेतों मे जल निकास की व्यवस्था को जरूर बनाए रखें।

हरी मिर्च की खेती के लिए खेतों को तैयार करें:

मिर्च की खेती करने के लिए किसान भूमि की भली प्रकार से जुताई करते हैं। एक गहरी जुताई की प्राप्ति करने के बाद खेतों को तैयार किया जाता है। जुताई के बाद तकरीबन 10 से 12 टन सड़ी हुई गोबर की खाद को खेतों में डालें। यदि गोबर की खाद सही प्रकार से सड़ी हुई नहीं होगी, तो खेतों में दीमक लग सकते हैं। मिट्टियों को अच्छी तरह से भुरभुरा कर लेना चाहिए। खेतों में क्यारियों को अच्छी तरह से थोड़ी थोड़ी दूरी पर लगाएं।


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हरी मिर्ची की फसल की सिंचाई:

हरी मिर्च की फसल की सिंचाई किसान सर्वप्रथम बीज रोपण करने के बाद देते हैं। मौसम के अनुसार सिंचाई की जाती है। यदि गर्मी का मौसम है तो लगभग 6 से 7 दिनों के अंदर सिंचाई दी जाती है। यदि मौसम ठंडा है यानी सर्दी का है, तो यह सिंचाई लगभग 15 से 20 दिनों के अंदर दी जाती है। जब खेतों में हरी मिर्च के फल व फूल आने लगे तब एक हल्की सिंचाई कर देनी चाहिए। अगर ऐसी स्थिति में आप सिंचाई नहीं करेंगे, तो उत्पादकता और फसलों की बढ़ोतरी में कमी आ जाएगी। साथ ही साथ आपको इस बात का भी ख्याल रखना होगा कि किसी भी प्रकार से खेतों में पानी का जमाव ना रहे।


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हरी मिर्च की फसल की निराई गुड़ाई करने का तरीका:

हरी मिर्ची की फसल के लिए निराई गुड़ाई करना बहुत ही ज्यादा उपयोगी होता है क्योंकि, निराई गुड़ाई करने से किसी भी प्रकार के कीट, रोग आदि फसलों में नहीं लगने पाते हैं व फसलों का बचाव होता है। निराई गुड़ाई दो से तीन बार हाथों द्वारा, तीन से चार बार गुड़ाई की जरूरत होती है। मिट्टियों को एक से दो बार चढ़ाना उपयोगी होता है।


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दोस्तों हम उम्मीद करते हैं कि आपको हमारा यह आर्टिकल हरी मिर्च की खेती की पूरी जानकारी पसंद आया होगा। हमारे इस आर्टिकल में हरी मिर्ची की खेती से जुड़ी सभी प्रकार की जानकारियां मौजूद हैं, जिससे आप लाभ उठा सकते हैं। यदि आपको हमारा यहां आर्टिकल पसंद आया हो, तो हमारे इस आर्टिकल को आप ज्यादा से ज्यादा अपने दोस्तों के साथ और सोशल मीडिया तथा अन्य प्लेटफार्म पर शेयर करें। धन्यवाद।
इस मिर्च का प्रयोग खाने से ज्यादा सुरक्षा उत्पादों में किया जाता है।

इस मिर्च का प्रयोग खाने से ज्यादा सुरक्षा उत्पादों में किया जाता है।

मिर्च को राजा चिली के नाम से भी जाना जाता है। नागालैंड में उत्पादित हो रही यह मिर्च ६०० रुपये प्रति किलो तक के मूल्य पर विक्रय होती है। इसका उपयोग खाने में होने के साथ-साथ कंपनियां इसका प्रयोग कर सुरक्षा उत्पाद भी निर्मित कर रही हैं। भारत में किसी भी फसल को उगाया जा सकता है, क्योंकि यहाँ हर प्रकार की मृदा उपलब्ध है। साथ ही, भारत में विभिन्न प्रकार की जलवायु भी होती हैं एवं प्रत्येक मृदा-जलवायु के माध्यम से भिन्न-भिन्न फसल का उत्पादन मिलता है। हालाँकि, भारत विभिन्न फसलों का एकमात्र सर्वाधिक उत्पादक देश है, परंतु वर्तमान में देखें तो विश्व की सर्वाधिक तीखी मिर्च भूत झोलकिया की जिसे नागा मिर्चा, गोस्ट पेपर, किंग मिर्चा, राजा मिर्चा के नाम से भी जाना जाता है। सर्वाधिक तीखेपन हेतु भूत झोलकिया का नाम गिनीज वर्ल्ड रिकॉर्ड्स में भी अंकित किया गया है। देश के उत्तर पूर्वी राज्य नागालैंड में उत्पादित होने वाली इस भूत झोलकिया का विभिन्न देशों में निर्यात हो रहा है। बतादें कि, भारत भूत झोलकिया का सर्वाधिक उत्पादक देश है, परंतु यह मिर्च इतनी तीखी होती है, कि इसको खाने से ज्यादा उपयोग सुरक्षा उत्पाद बनाने के लिए किया जाता है। नॉर्थ-ईस्ट प्रदेशों में इस मिर्च से भोजन तो निर्मित होते ही हैं, परंतु बेहद कम लोगों को पता होगा कि, भूत झोलकिया मिर्च से सुरक्षा में प्रयोग होने वाली चिली पेपर स्प्रे एवं हैंड ग्रेनेड निर्मित किये जाते हैं। आज कई देशों में पाउडर एवं कच्चे रूप में भूत झोलकिया विक्रय हो रहा है। [embed]https://www.youtube.com/watch?v=66YIwYYDIys&t=32s[/embed]

भूत झोलकिया को क्यों सुरक्षा बलों का कवच माना जाता है

खबरों के मुताबिक बताया गया है, कि भूत झोलकिया मिर्च के तीखेपन की वजह से कुछ लोगों का स्वास्थ्य खराब हो जाता है। इसी कारण से नॉर्थ-ईस्ट के अतिरिक्त अन्य स्थानों पर इसका उपयोग खाने हेतु नहीं होता परंतु अपनी इसी विशेषता के कारण से इस मिर्च को वर्तमान में भारतीय सुरक्षा बलों का सुरक्षा कवच माना जाता है। उपद्रवियों के विरुद्ध देश सुरक्षा बल फिलहाल इस मिर्च का प्रयोग कर रहे हैं। सीमा सुरक्षा बल यानी बीएसएफ की ग्वालियर, टेकनपुर स्थित टियर स्मोक यूनिट में भूत झोलकिया मिर्च का प्रयोग कर आंसू गैस के गोले निर्मित किये जा रहे हैं। हालाँकि इन गोलों के प्रयोग से कोई शारीरिक हानि नहीं होती, परंतु आंतकवादी व उपद्रवियों की आँखों को धुएं से बंद करने और दम घोटने की दिक्क्त देने में बेहद सहायक होते हैं।


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वर्तमान में भारत की सर्वोच्च रक्षा संस्थान डीआरडीओ यानी रक्षा अनुसंधान और विकास संगठन द्वारा भूत झोलकिया के अत्यधिक तीखेपन को देखते हुए इसको सुरक्षा उपकरणों में शम्मिलित किया गया है। महिलाओं की आत्मरक्षा हेतु भी भूत झोलकिया से चिली स्प्रे की तरह विभिन्न उत्पाद निर्मित किये जा रहे हैं, हालांकि इस मिर्च स्प्रे के कारण कोई घातक हानि नहीं होती है। परंतु कुछ वक्त तक उपद्रवियों को रोकने एवं गुमराह करने हेतु यह बेहद सहायक साबित होता है। केंद्रीय वाणिज्य एवं उद्योग मंत्रालय की एक रिपोर्ट के अनुसार, मिर्ची के तीखेपन में प्रथम स्थान पर प्योर कैप्साइसिन द्वितीय पर स्टैंडर्ड पेपर स्प्रे, तृतीय पर कैरोलिना रीपर एवं चतुर्थ पर ट्रिनिडाड मोरुगा स्कोर्पियन का नाम शामिल है। टॉप 5 तीखी मिर्चों में भूत झोलकिया का नाम भी शम्मिलित है।
काली मिर्च की खेती, बेहद कम लागत में हो जाएंगे लखपति, जानिए कैसे करेंगे खेती

काली मिर्च की खेती, बेहद कम लागत में हो जाएंगे लखपति, जानिए कैसे करेंगे खेती

कम लागत में ज्यादा मुनाफा पाना भला किसे अच्छा नहीं लगता. अगर आप भी उन्हीं लोगों में से एक हैं, जो बेहद कम लागत में कोई ऐसा बिजनेस ढूंढ रहे हैं, जो ज्यादा मुनाफा दे तो हम आपको एक ऐसी खेती के बारे में बता रहे हैं, जिसके जरिये आप लाखों की कमाई करके मालामाल हो सकते हैं. बाजार में इन दिनों काली मिर्च की काफी ज्यादा डिमांड है. जिसकी वजह से किसानों का काफी ज्यादा फायदा मिल रहा है. गर्म मसाले में आमतौर पर काली मिर्च का इस्तेमाल किया जाता है. एक अच्छी खुशबू और बेमिसाल स्वाद के लिए इसकी मांग पूरी दुनिया में रहती है. अगर काली मिर्च की खेती व्यापारिक तरीके से की जाए तो इससे अच्छा खासा मुनाफा कमाया जा सकता है. देश में काली मिर्च का उत्पाद अकेले केरल से किया जा रहा है. जो की 90 से 95 फीसद है. इसका पौधा बेल या फिर लताओं के रूप में बढ़ता है. गर्मी का समय यानि कि, मार्च से अप्रैल और बारिश का समय यानि जून से जुलाई के महीनों में काली मिर्च के बीजों की रोपाई का सबसे अच्छा समय होता है. इसकी खेती करके आप भी लाखों कमा सकते हैं. वो कैसे, चलिए जान लेते हैं.

जानिए भारत के कौन से राज्यों में होती है काली मिर्च की खेती

काली मिर्च की खेती भारत में बड़े पैमाने में की जाती है. लेकिन काली मिर्च की खेती सबसे ज्यादा कर्नाटक, तमिलनाडु, कोंकण क्षेत्र के साथ साथ पांडिचेरी और अंडमान निकोबर द्वीप समूह में की जाती है.

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कैसे करें काली मिर्च की खेती?

रसोई में कल मिर्च का इस्तेमल मसालों के तौर पर किया जाता है. जिस वजह से बाजार में इसकी डिमांड काफी ज्यादा रहती है. इसकी कहती के लिए मौसम से लेकर मिट्टी और रोपाई ये सभी चीजें मायने रखती हैं. इसलिए इसकी खेती से पहले कुछ खास बातों का ध्यान जरुर रखना चाहिए.
  • खेती के लिए उचित जलवायु

काली मिर्च की खेती करना चाहते हैं, तो मौसम का खास ख्याल रखें. क्योंकि ज्यादा ठंडे मौसम में इसकी खेती नहीं की जाती. इसकी खेती के लिए अच्छी बारिश की जरूरत होती है. साथ ही 10 से 40 डिग्री सेल्सियस का तापमान इसकी खेती के लिए बेहतर होता है. हालांकि आप चाहें तो उचित व्यवस्था करके इसकी खेती पूरे साल कर सकते हैं.
  • खेती के लिए उचित मिट्टी

काली मिर्च की खेती के लिए उचित मिट्टी का होना बेहद जरूरी है. इसके लिए लाल लेटेराईट मिट्टी सबसे उपयुक्त होती है. मिट्टी का पीएच मान 4.6 से 6 के बीच में होना अच्छा माना जाता है, इसकी मिट्टी की सबसे बड़ी खासियत यही होती है, कि, इसे ज्यादा पानी की जरूरत नहीं होती.
  • इस तरह करें काली मिर्च के पौधे की रोपाई

काली मिर्च की खेती के लिए आप बीजों और पौधों दोनों में से किसी का भी इस्तेमाल कर सकते है. उनकी रोपाई के वक्त उनके बीच की दूरी का ध्यान रखें. 1 हजार 666 पौधे एक हेक्टर की जमीन पर लगाना सही हो सकता है.
  • जानिए पौधे लगाने का सही तरीका

काली मिर्च के पौधौं को सहारे की जरूरत होती है. व्यवसायिक खेती के लिए उचित दूरी पर खेतों में खंबे गाड़ें. जिसके बाद तीन से चार मीटर की दूरी ओर गड्ढों को खोद लें. जिनमें काली मिर्च के पौधों की रोपाई की जाएगी.काली मिर्च के पौधों की ग्रोथ बेल की तरह होती है.
  • जानिए कैसे करें सिंचाई

गर्मियों के मौसम में काली मिर्च की फसल में सिंचाई की जरूरत दो दो दिनों के अंतर में करनी चाहिए. वहीं मौसम अगर सर्दियों का है तो ऐसे में एक हफ्ते के अंतराल में सिंचाई करें. आप इस बात का ध्यान रखें की काली मिर्च की फसल में पर्याप्त नमी बनी रहे.

काली मिर्च की क्या हैं उन्नत किस्में?

  • पन्नियूर एक की वैरायटी की पैदावार 1240 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर के हिसाब से होती है.
  • पन्नियूर दो की वैरायटी की पैदावार 2600 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर के हिसाब से होती है.
  • पन्नियूर तीन की वैरायटी की पैदावास 1950 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर के हिसाब से होती है.
  • पन्नियूर चार की वैरायटी की पैदावार 1270 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर के हिसाब से होती है.
  • पन्नियूर पांच की वैरायटी की पैदावार 1100 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर के हिसाब से होती है.
  • सुभाकारा की वैरायटी की पैदावार 2350 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर के हिसाब से होती है.
  • श्रीकारा की वैरायटी की पैदावार 2680 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर के हिसाब से होती है.
  • पंचमी की वैरायटी की पैदावार 2800 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर के हिसाब से होती है.
  • पूर्णमनी की वैरायटी की पैदावार 2300 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर के हिसाब से होती है.

काली मिर्च की खेती के लिए कैसी हो उर्वरक और खाद?

  • काली मिर्च की अच्छी उपज के लिए अप्रैल से मई के महीने में करीब 10 किलो सड़ा हुआ गोबर हर पौधे में डालना चाहिए.
  • अप्रैल से मई के महीने में बुझा हुआ चुनाव 500 ग्राम हर पोधे जे हिसाब से लगाया जाना चाहिए.
  • अगस्त से सितंबर के महीने 500 ग्राम अमोनिया सल्फेट, एक किलो सुपर फास्फेट, 100 ग्राम म्यूरेट ऑफ पोटाश हर पौधे में देना चाहिए.
  • उर्वरकों और खादों को 25 से 30 सेंटीमीटर की दूरी और 12 से 15 सेंटीमीटर की गहराई पर डालना अच्छा होता है. साथ ही इसे मिट्टी में भी अच्छे से मिला देना चाहिए.


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कैसे करें काली मिर्च की तोड़ाई?

काली मिर्च के पौधों की तुड़ाई का समय रोपाई के लगभग 6 से 7 महीने में हो जाता है. काली मिर्च की फलियां 90 फीसद तक पक जाने पर उसके स्पाइक काट सकते हैं. हालांकि आमतौर पर काली मिर्च की कटाई नवंबर के महीने से शुरू होती है, जोकि मार्च के महीने तक चलती है.

जान लीजिये काली मिर्च की उपज के बारे में भी

काली मिर्च का एक पौधा एक साल में लगभग 4 से 6 किलो तक काली मिर्च की उपज दे सकता है. जिसके हिसाब से 40 से 60 क्विंटल प्रति हेक्टेयर के हसाब से इसकी पैदावार मिल सकती है.

जानिए काली मिर्च की खेती के फायदे

  • काली मिर्च का इस्तेमाल मसालों में किया जाता है.
  • सब्जियों का टेस्ट बढ़ाने के लिए भी काली मिर्च का इस्तेमाल किया जाता है.
  • काली मिर्च का इस्तेमाल औषधि के रूप में भी किया जाता है.
  • काली मिर्च के साम अन्य मसालों से कहीं ज्यादा हैं.
  • चाइनीज डिशेज में काली मिर्च का इस्तेमाल सबसे ज्यादा किया जाता है.
  • काली मिर्च की फसल सदाबहार है. जो जमकर फलती और फूलती है.
  • काली मिर्च की एक बार की खेती से सालों साल तक बंपर कमाई की जा सकती है.
अगर आप भी कलि मिर्च की खेती करके बंपर कमाई करना चाहते हैं, तो आपको इसके लिए ज्यादा मेहनत करने की जरूरत नहीं होगी. मार्केट में इसकी डिमांड काफी ज्यादा है. इसकी कमीत करीब 4 सौ रुपये प्रति किलो है. ऐसे में आप महीने में आराम से 40 से 50 हजार रुपये तक कमा सकते हैं.
विश्व की सर्वाधिक तीखी मिर्च ने गिनीज बुक ऑफ वर्ल्ड रिकार्ड में नाम दर्ज किया

विश्व की सर्वाधिक तीखी मिर्च ने गिनीज बुक ऑफ वर्ल्ड रिकार्ड में नाम दर्ज किया

आजकल एक ही फसल की विभिन्न किस्में देश में मौजूद हैं। कृषि वैज्ञानिक एवं कृषि विशेषज्ञ निरंतर नवीन किस्मों को विकसित करने के प्रयास में जुटे रहते हैं। उसी तरह लाल मिर्च की एक किस्म भूत जोलोकिया आजकल गिनीज बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड में दर्ज होने की वजह से चर्चा में है। सामान्यतः मिर्च का इस्तेमाल सब्जी में तीखापन लाने, महक और स्वाद को बढ़ाने हेतु किया जाता है। आपकी जानकारी के लिए बतादें, कि नागालैंड की भूत जोलोकिया मिर्च विश्व की सर्वाधिक तीखी मिर्च मानी जाती है। दरअसल, मिर्च का नाम कान में पड़ते ही तीखेपन का स्वाद मन में आ जाता है। आमतौर पर मिर्च का उपयोग सब्जी में सलाद एवं स्वाद बढ़ाने के लिए किया जाता है। लाल मिर्च तुलनात्मक काफी ज्यादा तीखी होती है। इसको पीसकर मसाले के रूप में इस्तेमाल किया जाता है। मिर्च उपयोग से सब्जी का रंग लाल होने के साथ-साथ इसके स्वाद में भी परिवर्तन आ जाता है। आज ऐसी मिर्च के विषय में जानने का प्रयास करेंगे, जिसको विश्व की सबसे ज्यादा तीखी मिर्च के रूप में जाना जाता है। अच्छी विशेषताओं वाली यह मिर्च महिलाओं के सुरक्षा कवच का कार्य करती है।

भूत जोलोकिया मिर्च गिनीज बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड में हुई शामिल

भूत जोलोकिया मिर्च को दुनिया की सर्वाधिक तीखी मिर्च के रूप में जानी जाती है। इसका उत्पादन भारत के नागालैंड में किया जाता है। इसके तीखेपन स्वाद की वजह से भूत जोलोकिया मिर्च को गिनीज बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड्स में शामिल है। वर्ष 2007 में इसे रिकॉर्ड्स में दर्ज किया गया है। नागालैंड में अधिकाँश किसान इसकी खेती किया करते हैं। साथ इसको विश्व के विभिन्न देशों में मिर्च को निर्यात किया जाता है। भारत की भूत जोलोकिया की मांग विदेशों तक से भी रहती है। यह भी पढ़ें: यहां के किसान मिर्च की खेती से हो रहे हैं मालामाल, सरकार भी कर रही है मदद

भूत जोलोकिया मिर्च कितने दिन में तैयार हो जाती है

भारत के नागालैंड की यह प्रसिद्ध भूत जोलोकिया मिर्च 75 से 90 दिनों में पककर तैयार हो जाती है। अगर हम आकार की बात करें तो मिर्च की ऊंचाई 50 से 120 सेंटीमीटर तक होती है। इसका उत्पादन पहाड़ों पर काफी अच्छी तरह से होता है। सामान्य मिर्च की तुलना में लाल मिर्च लंबाई में छोटी होती है। अगर इसकी लंबाई की बात की जाए तो यह 3 सेंटीमीटर तक होती है। वहीं चौड़ाई 1 से 1. 2 सेंटीमीटर तक होती है।

भूत जोलोकिया महिलाओं की सुरक्षा करने हेतु भी काम आती है

भूत जोलोकिया की एक और सबसे बड़ी खासियत है। इसका उपयोग सुरक्षा बल एजेंसियों द्वारा आँसू गैस गोला इत्यादि उत्पाद बनाने के लिए भी किया जाता है। साथ ही, इसके तीखी होने की विशेषता के चलते इस मिर्च से स्प्रे भी तैयार की जाती है। इससे महिलाओं के साथ होने वाली बदसलूकी और छेड़खानी में संरक्षण के तौर पर उपयोग करती हैं। बतादें, कि स्प्रे से गले एवं आंखों में जलन होनी चालू हो जाती है। व्यक्ति की खांसी नहीं रुकती और बेहाल हो जाता है।
पंजाब में किसान अपनी शिमला मिर्च की उपज को सड़कों पर फेंकने को हुए मजबूर

पंजाब में किसान अपनी शिमला मिर्च की उपज को सड़कों पर फेंकने को हुए मजबूर

आजकल देश के अलग अलग हिस्सों से कहीं बैंगन तो कहीं प्याज के दाम अत्यधिक गिरने की खबरें आ रही हैं। किसान लागत भी नहीं निकल पाने वाली कीमतों से निराश और परेशान होकर अपनी उपज को सड़कों पर ही फेंकना उचित समझ रहे हैं। इसी कड़ी में पंजाब के किसानों को शिमला मिर्च में खासा नुकसान वहन करने की खबरें सामने आ रही हैं। दरअसल। यहां व्यापारी एक रुपये किलो शिमला मिर्च खरीद रहे हैं। किसानों का इससे लागत तो दूर ले जाने का भाड़ा भी नहीं निकल पा रहा है। इसी वजह से दुखी होकर किसान अपनी शिमला मिर्च को सड़क पर फेंकने को मजबूर हो गए हैं। बेमौसम बारिश, ओलावृष्टि के चलते किसानों को काफी हानि हुई है। इससे किसानों की लाखों रुपये की फसल बिल्कुल चौपट हो चुकी है। हालांकि, किसान भाइयों की परेशानियां यहीं खत्म नहीं हो रही हैं। किसान भाइयों को बागवानी यानी फल, सब्जी की बुवाई में भी काफी नुकसान उठाना पड़ रहा है। अत्यधिक उत्पादन होने की वजह से मंडियों में समुचित भाव किसानों को नहीं मिल पा रहे हैं। इसलिए किसानों को काफी ज्यादा परेशानी हो रही है। किराया तक भी न निकल पाने की वजह से नाराज किसान सब्जियों को सड़कों पर ही फेंकने को मजबूर हो रहा है।

शिमला मिर्च की कीमत पंजाब में 1 रुपए किलो

पंजाब में शिमला मिर्च की स्थिति काफी बेकार हो चुकी है। किसान भाई शिमला मिर्च लेकर मंड़ी पहुंच रहे हैं। लेकिन व्यापारी किसान से 1 रुपये प्रति किलो ही शिमला मिर्च खरीद रहा है। मनसा जनपद में बेहद ही ज्यादा शिमला मिर्च का उत्पादन हुआ है। यहां के किसान भी शिमला मिर्च को अच्छी कीमतों पर मंड़ी में नहीं बेच पा रहे हैं। ये भी पढ़े: वैज्ञानिकों द्वारा विकिसत की गई शिमला मिर्च की नई किस्म से किसानों को होगा दोगुना मुनाफा

शिमला मिर्च को सड़क पर फेंकने को मजबूर हुए किसान

मुख्यमंत्री भगवंत मान द्वारा किसान भाइयों से शिमला मिर्च की ज्यादा बुवाई करने की अपील की थी। नतीजा यह है, कि मनसा जनपद के कृषकों ने बेहतरीन उत्पादन भी हांसिल कर लिया है। पंजाब की मंड़ियों में शिमला मिर्च की काफी अधिक आवक हो रही है। समस्त शिमला उत्पादक किसान अपनी उपज को लेकर के मंड़ी पहुंच रहे हैं। परंतु, मंड़ियों में उनकी शिमला मिर्च की कीमत 1 रुपये किलो के अनुरूप लगाई जा रही है। इससे किसान हताश होकर अपनी ट्रैक्टर- ट्रॉली पर लदी शिमला मिर्च की उपज को सड़कों पर फेंकना उचित समझ रहे हैं।

व्यापारी किसानों पर बना रहे दबाव

कहा गया है, कि शिमला मिर्च की ज्यादा आवक देख व्यापारियों द्वारा किसानों पर शिमला मिर्च को 1 रुपये प्रति किलो की दर से बेचने पर दबाव बनाया जा रहा है। इससे किसान काफी आक्रोश में दिखाई दे रहे हैं। पंजाब राज्य में 3 लाख हेक्टेयर में हरी सब्जियां उगाई जाती हैं। 1500 हेक्टेयर में शिमला मिर्च की पैदावार की जाती है। मानसा, फिरोजपुर और संगरूर जनपद में सर्वाधिक शिमला मिर्च का उत्पादन किया जाता है।
मिर्च की खेती करके किसान भाई जल्द ही कमा सकते हैं अच्छा खासा मुनाफा, इतना आएगा खर्च

मिर्च की खेती करके किसान भाई जल्द ही कमा सकते हैं अच्छा खासा मुनाफा, इतना आएगा खर्च

भारत में मिर्च सब्जी और मसाले के रूप में प्रयोग की जाती है। इसका प्रयोग भारतीय उपमहाद्वीप के लगभग हर घर में किया जाता है। यह स्वाद में बेहद तीखी होती है, जिसकी वजह से व्यंजनों का स्वाद बढ़ाने के लिए किचन में इसका इस्तेमाल किया जाता है। भारत में लाल के साथ-साथ हरी मिर्च का भी बहुतायत में उत्पादन किया जाता है। भारत दुनिया में मिर्च का एक प्रमुख निर्यातक देश है। भारत के मिर्च की दुनिया भर के बाजारों में अच्छी खासी मांग रहती है।

मिर्च की खेती में इतना आता है खर्च

अगर किसान भाई एक हेक्टेयर खेत में
मिर्च का उत्पादन करना चाहते हैं तो उन्हें इसके लिए 10 किलोग्राम बीज की जरूरत होगी। देशी मिर्च के 10 किलोग्राम बीज की बाजार में कीमत 2500 रुपये प्रति किलो है। जबकि हाइब्रिड बीज की कीमत 3500 से 4000 रुपये प्रति किलो तक हो सकती है। इसके अलावा एक हेक्टेयर खेत में सिंचाई, खाद डालना, कीटनाशक डालना और कटाई में 3 लाख रुपये तक का खर्च आ सकता है।

इतना होगा फायदा

एक हेक्टेयर खेत में लगभग 300 क्विंटल मिर्च का उत्पादन हो सकता है। जबकि मिर्च की औसत कीमत 40 रुपये प्रति किलो होती है। इस हिसाब से एक हेक्टेयर खेत में 12 लाख रुपये की मिर्च का उत्पादन हो सकता है। अगर मिर्च की खेती में आने वाली लागत को अलग कर दें तब भी किसान भाइयों को एक हेक्टेयर खेत में मिर्च उत्पादन करने पर लगभग 9 लाख रुपये का मुनाफा हो सकता है। इस हिसाब से किसान भाई बेहद कम समय में मिर्च की खेती से ज्यादा से ज्यादा रुपये कमा सकते हैं।

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ऐसी जमीन पर करें मिर्च की खेती

मिर्च की खेती हर तरह की जमीन में की जा सकती है। अच्छे उत्पादन के लिए हल्की उपजाऊ और पानी के अच्छे निकास वाली ज़मीन का चयन करना चाहिए। मिर्च की खेती के लिए जमीन का चुनाव करने के पहले मिट्टी का परीक्षण अवश्य करवाएं। इस खेती के लिए मिट्टी का पीएच मान 6 से 7 के बीच होना चाहिए। मिर्च की रोपाई हमेशा मिट्टी के बेड पर ही करना चाहिए। इससे पौधों के आस पास पानी जमा नहीं होता है और पौधे सड़ने से बच जाते हैं। मिर्च के पौधों को हमेशा नर्सरी में तैयार करना चाहिए। जिसके लिए उपचारित बीजों का इस्तेमाल करें। बीजों की बुवाई के 40 दिनों के बाद पौध तैयार हो जाती है। जिसे बाद में खेत में लगाया जा सकता है। पौध को खेत में लगाते समय ध्यान रखें कि पौधे स्वास्थ्य हों और उनकी ऊंचाई 15 से 20 सेंटीमीटर होनी चाहिए। मिर्च की खेती में हानिकारक रोगों के साथ ही कीटों का आक्रमण होता रहता है। जिससे निपटने के लिए किसान भाई जैविक कीटनाशकों का उपयोग कर सकते हैं। इसके अलावा रोगों से निपटने के लिए मिथाइल डैमेटन, एसीफेट, प्रॉपीकोनाज़ोल या हैक्साकोनाज़ोल जैसी दवाइयों का भी उपयोग किया जा सकता है। फसल आने पर मिर्च को हरे रूप में ही तोड़ लिया जाता है और बाजार में बेंच दिया जाता है। इसके अलावा जब मिर्च लाल हो जाती है तो उसे तोड़कर सुखा लिया जाता है और मिर्च के आकार के हिसाब से अलग कर लिया जाता है। इसके बाद सूखी मिर्च को पैक करके स्टोर कर लिया जाता है और बाजार में बेंचने के लिए भेज दिया जाता है।
जानें मिर्च की खेती में कितनी लागत में किसान कितना मुनाफा कमा सकते हैं

जानें मिर्च की खेती में कितनी लागत में किसान कितना मुनाफा कमा सकते हैं

भारत संपूर्ण वैश्विक खपत का अकेले 36 प्रतिशत मिर्ची का उत्पादन करता है। यह मसालों समेत मिर्च का भी निर्यात करता है। भारतीय लोग तीखा खाना अधिक पसंद करते हैं। सब्जी से लेकर दाल तक में तीखापन लाने के लिए मिर्च-मसालों का तड़का लगाया जाता है। यहां तक कि बाजार में मिलने वाले चिप्स और कुरकुरे भी तीखे ही होते हैं। विशेष बात यह है, कि हरी और लाल मिर्च का अचार भी निर्मित किया जाता है, जिसे लोग बड़े ही स्वाद से खाते हैं। ऐसी स्थिति में हम यह कह सकते हैं, कि बाकी फसलों की भांति किसान यदि मिर्च की खेती करते हैं, तब वह बेहतरीन आमदनी कर सकते हैं।

अकेला भारत वैश्विक खपत का 36 फीसद मिर्च उत्पादन करता है

बतादें कि मुख्य बात यह है, कि भारत पूरी दुनिया की खपत का अकेले 36 प्रतिशत मिर्ची का उत्पादन करता है। यह मसालों समेत मिर्च का भी निर्यात करता है। भारत में तमिलनाडु, पश्चिम बंगाल, गुजरात, राजस्थान, कर्नाटक, महाराष्ट्र और आंध्र प्रदेश समेत कई राज्यों में
मिर्च की खेती की जाती है। एकमात्र आंध्र प्रदेश की मिर्च के कुल उत्पादन में 57 प्रतिशत भागीदारी है। साथ ही, विभिन्न राज्यों में सरकारें मिर्च की खेती हेतु अनुदान भी प्रदान करती हैं। हालाँकि, बाजार में हरी मिर्च का भाव सदैव 60 रुपये से लेकर 80 रुपये प्रतिकिलो तक रहता है।

एक हेक्टेयर जमीन पर मिर्च की खेती करने पर कितने किलो बीज की जरूरत पड़ेगी

भारत में हरी एवं लाल मिर्च दोनों की पैदावार की जाती है। इन दोनों मिर्चों की खेती किसी भी प्रकार की मृदा में की जा सकती है। यदि किसान भाई एक हेक्टेयर जमीन में मिर्च का उत्पादन करने की योजना बना रहे हैं, तो उसके लिए उनको सर्वप्रथम नर्सरी तैयार करनी पड़ेगी। नर्सरी तैयार करने के लिए लगभग 8 से 10 किलो मिर्च की जरुरत पड़ेगी। 10 किलो मिर्च के बीज खरीदने के लिए आपका 20 से 25 हजार रुपये का खर्च हो जाएगा। अगर आप हाइब्रिड बीज खरीद रहे हैं, तो आपको इसके लिए 40 हजार रुपये का खर्चा करना पड़ेगा। उसके बाद आप नर्सरी के अंदर बीज की बुवाई भी कर सकते हैं। एक माह के उपरांत नर्सरी में मिर्च के पौधे पूरी तरह तैयार हो जाएंगे। इसके उपरांत आप पहले से तैयार खेत में मिर्च की बुवाई कर सकते हैं।

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एक हेक्टेयर में मिर्च उत्पादन के दौरान कितना खर्चा आता है

हालांकि, मिर्च की रोपाई करने से पूर्व सबसे पहले खेत को बेहतर ढ़ंग से तैयार करना पड़ेगा। खेत में उर्वरक के तौर पर गोबर को इस्तेमाल करना अधिक अच्छा रहेगा। एक हेक्टेयर जमीन में मिर्च का उत्पादन करने पर 3 लाख रुपये का खर्चा आएगा। परंतु, कुछ माह के उपरांत आप इससे 300 क्विंटल तक मिर्च की पैदावार उठा सकते हैं। अगर आप 50 रुपये के हिसाब से भी 300 क्विंटल मिर्च की बिक्री करते हैं, तो आपको करीब 15 लाख की आमदनी होगी।
किसान मिर्च की खेती करके काफी अच्छा मुनाफा प्राप्त कर सकते हैं

किसान मिर्च की खेती करके काफी अच्छा मुनाफा प्राप्त कर सकते हैं

मिर्च खाने के लिए काफी अच्छी होती है। कैप्साइसिन रसायन मिर्च को काफी तीखा बनाता है, इसलिए यह ज्यादातर मसालों में इस्तेमाल किया जाता है। मिर्च को सॉस, अचार एवं दवाई बनाने में भी उपयोग किया जाता है। मिर्च में विटामिन ए, सी, फास्फोरस एवं कैल्शियम काफी हैं। मिर्च एक नगदी उत्पाद है, इसे किसी भी जलवायु में उगाया जा सकता है। मिर्च की उन्नत खेती करके कृषक काफी अच्छा मुनाफा हांसिल कर सकते हैं। मिर्च की खेती करने के लिए बेहतर जल निकासी वाली दोमट अथवा बलुई मृदा चाहिए, जिसमें ज्यादा कार्बनिक पदार्थ होते हैं। लवण और क्षार युक्त भूमि इसके लिए ठीक नहीं है। खेत की तीन-चार बार जुताई करके तैयार करना चाहिए। 1.25 से 1.50 किग्रा बीज प्रति हेक्टेयर खेती की आवश्यकता होती है।

मिर्च के पौधे की बिजाई

बतादें, कि प्रति क्यारी 50 ग्राम फोरेट एवं सड़ी हुई गोबर की खाद मिलाएं। बीज को 2 ग्राम एग्रोसन जीएन, थीरम अथवा कैप्टान रसायन प्रति किलो ग्राम उपचारित करें। बीज को पंक्तियों में एक इंच के फासला पर बोकर मृदा एवं खाद से ढक दें। ऊपर पुआल अथवा खरपतवार से ढक देना चाहिए। बीज जमने के पश्चात खरपतवार को बाहर निकाल दें। मिर्च का पौधे की 25 से 35 दिन में बिजाई की जा सकती है। मिर्च को हमेशा रात को ही रोपाई करनी चाहिए। रोपाई के दौरान कतार और पौधों में 45 सेमी का फासला होना चाहिए। 85 से 95 दिन में हरी मिर्च फल देने लायक हो जाती है। सूखी मिर्च के फल की तुड़ाई 140-150 दिन पर रंग लाल होने पर करनी चाहिए।

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खेत में उर्वरक और खाद की मात्रा

200 कुंतल गोबर अथवा कंपोस्ट, 100 कुंतल नाइट्रोजन, 50 कुंतल फास्फोरस और 60 कुंतल पोटाश प्रति हेक्टेयर की जरूरत होती है। रोपाई से पूर्व कंपोस्ट में फास्फोरस की संपूर्ण मात्रा और नाइट्रोजन की आधी मात्रा दी जानी चाहिए। उसके पश्चात दो बार में शेष मात्रा दी जानी चाहिए। अगर कम वर्षा हो तो 10 से 15 दिन के समयांतराल पर सिंचाई करनी चाहिए। फसल की फूल और फल बनने के दौरान सिंचाई करनी चाहिए। सिंचाई नहीं होने पर फल और फूल काफी छोटे हो जाते हैं। खेत को खरपतवार रहित रखना चाहिए, जिससे कि बेहतरीन उत्पादन हो सके।